Monday, 24 August 2020

17-08-2020 (Always been fond of reading and writing)

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हमेशा रहा पढ़ने-लिखने का शौक
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दिनेश कुकरेती
ता नहीं आपकी नजर में यह अच्छी आदत है या बुरी, पर मुझे पढ़ने-लिखने का शौक स्कूलिंग के दौर से ही रहा है। मेरे पास जब भी पैसे होते थे, उन्हें मैं किसी पत्र-पत्रिका को खरीदने पर ही खर्च करता था। जब खरीदने की हैसियत नहीं होती थी तो किराये पर ही उपन्यास ले आता था और फिर धीरे-धीरे पैसे चुकाता था। न जाने कितने उपन्यास, कहानी संग्रह और पत्रिकाएं मैंने किराये पर ही पढी़ं। यह आदत अब भी है। पत्नी ने एक बार शर्ट लाने के लिए आठ सौ रुपये दिए, तो मैं उनसे बैग भरकर अपनी पसंद की किताबें ले आया। पहले तो वो नाराज हुई, लेकिन फिर उसकी समझ में भी आ गया कि यह कोई बुरा शौक नहीं है। हां! इतना जरूर हुआ कि उसने फिर मुझे कुछ खरीदने की जिम्मेदारी नहीं सौंपी। आज जब मैं कोई किताब खरीदकर लाता हूं तो वह काफी खुश होती है।


पढ़ने के शौक का एक फायदा यह भी हुआ कि लिखने में भी मेरा हाथ खुल गया। मैं कालेज के जमाने से ही पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगा था। इससे पहचान बनी तो लेखन मेरा जुनून बन गया और मैं पत्रकार। इस लेखन की बदौलत ही कोरोना काल में भी मेरा धैर्य बरकरार रहा। इन दिनों मैं प्रेस क्लब की त्रैमासिक पत्रिका "गुलदस्ता" के संपादन में जुटा हुआ हूं। तीन-चार दिन पूर्व साथियों के साथ योजना बनी कि जब मैटर पूरा आ जाए तो मुझे प्रेस क्लब जाकर उसे पत्रिका में व्यवस्थित करना है। ताकि जल्द से जल्द उसे छपने के लिए प्रेस में भेजा जा सके। मैं इसके लिए खुशी-खुशी तैयार हो गया। मनपसंद कार्य में मैं कभी किंतु-परंतु नहीं करता। इसके अलावा मुझे भी पत्रिका के लिए लीड स्टोरी लिखने कि जिम्मेदारी सौंपी गई है। आफिस में काम से थोडा़ फुसर्त मिलने पर मैं यह कार्य पूरा भी कर चुका हूं।


इसके अलावा एक कहानी और कुछ कविताएं भी लिखी हैं, जिन्हें लोगों के बीच लाने का यह अच्छा मौका है। कोरोना काल होने के कारण पत्रिका की थीम भी कोरोना पर रखी गई है। इसलिए पत्रिका में छपने वाली हर रचना के केंद्र में कोरोना से उपजी परिस्थितियां ही होनी चाहिएं। हालांकि, आफिस की व्यस्तताओं के चलते पत्रिका के कार्य पर भी असर पड़ रहा है, लेकिन यही तो जीवन की असली परीक्षा है कि हम चुनौतियों का मुकाबला कैसे करते हैं। इसलिए आजकल न दिन का पता चल रहा है, न रात का ही। कुछ-न-कुछ लिखने या अन्य साथियों की ओर से भेजी गई सामग्री के संपादन में रात के तीन बज जा रहे हैं।

 

दिक्‍कत यह है कि जल्दी सोने पर अपराध बोध-सा होने लगता है। इसलिए सोने से पहले मैं कुछ लिखता-पढ़ता जरूर हूं। यू-ट्यूब पर कुछ प्रसिद्ध साहित्यकारों का इंटरव्यू देखना, उन्हें सुनना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है। इन दिनों मैं प्रसिद्ध उपन्यासकार अमीश त्रिपाठी की शिवत्रयी (शिवा ट्रायोलॉजी) सीरीज का पहला उपन्यास "मेलुहा के मृत्युंजय" पढ़ रहा हूं। आगे दो उपन्यास और हैं। खैर! उपन्यास पर बाकी चर्चा आगे करूंगा। इस समय रात के पौने तीन बज रहे हैं और आंखें भी भारी होने लगी हैं। इसलिए आज इतना ही...।
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Always been fond of reading and writing
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Dinesh Kukreti
I don't know whether this is good or bad habit, but I have been fond of reading and writing since schooling. Whenever I had money, I used to spend it on buying a magazine. When there was no status to buy, he used to bring novels on rent and then slowly paid the money. I do not know how many novels, story collections and magazines I have read on rent. This habit is still there. Once the wife gave eight hundred rupees to bring the shirt, I filled the bag with them and brought books of my choice. At first she was angry, but then she also understood that it is not a bad hobby. Yes! It happened so much that he again did not entrust me with the responsibility of buying anything. Today when I buy a book and bring it, she is very happy.

One benefit of the hobby of reading was that my hand in writing also opened up. I started writing in magazines and magazines since college. Writing became my passion and I became a journalist. Due to this writing, my patience remained intact even during the Corona period. These days I am involved in editing Press Club's quarterly magazine "Guldasta". Three or four days ago, it was planned with my colleagues that when the matter is complete, I have to go to the Press Club and organize it in a magazine. So that he can be sent to the press for printing as soon as possible. I happily agreed to this. I never do anything in my favorite work. Apart from this, I have also been entrusted with the responsibility of writing the lead story for the magazine. I have also completed this work after getting a small amount of time from work in the office.


Apart from this, a story and some poems have also been written, which is a good chance to bring it to the public. The theme of the magazine has also been placed on the corona, being the Corona era. Therefore, there should be conditions arising from the corona at the center of every composition printed in the magazine. Although the work of the magazine is also being affected due to the busyness of the office, but this is the real test of life how we meet the challenges. That is why neither day nor night is known. It is three o'clock in the night to write something or to edit the material sent by other colleagues.

The problem is that early on, there is a feeling of guilt on sleeping. So before sleeping I must read and write something. I also love to see interviews of some famous litterateurs on YouTube. These days I am reading the first novel of the famous novelist Amish Tripathi's Shivatrayi (Shiva Triology) series, "Mrityunjaya of Meluha". There are two more novels ahead. Well! I will discuss the rest of the novel further. At this time, it is three o'clock at night and the eyes are also getting heavier. That is why today.

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